Today, we have with us Nikita sharing her poem as a guest post!
मैं गाय नहीं जो एक खूँटे से बंध जाऊँ ,
इंसान हूँ मैं -
हर ज़ुर्म को हराना जानती हूँ ।
ऐसा नहीं हर आवाज़ ज़ुर्म की है,
लेकिन दर्दभरी आवाज़ को प्रेम
और जु़ल्म भरी आवाज़ पर छूरी बनना जानती हूँ मैं ।
पलकों पे दहलते मेरे ख़्वाब से,
सांसें तेरी रुल जाएँगीं ,
जब मेरी ही मुस्कान तुझे
तेरे ज़ुल्म के आगे मुक़म्मल नज़र आएगी ।
सहम जाएगा तेरा हर वो पेहरा,
जिसमें तक़लीफ़मय सांसे
तुझे रुला जाएँगीं ।
हूँ आसमानी मैं,
धरा भी हूँ ,
हरियाली और प्रलय,
घटा और आसरा बन
तुझे बना और मिटा सकती हूँ ।
For readers, who don't understand hindi
I am not a slave,
But an independent personality..!!
I can defy every evil,
Also, I identify the Evil..!!
I am love for those in pain
But, a sword for the torture..
You will be jittered
With the voice of my dreams,
When your torture will
No less than complete me..
Your days will go dull
When they will pronounce my screams in unison..!!
I am the sky,
I am the earth,
Creator of greenery and volcanic erruption,
Metaphor of rain and the support,
I am,
I can erase you..!!
0 Scribbles:
Post a Comment
Thank You for taking pains, commenting :)